Wednesday, February 18, 2009

अशोक आन्द्रे



मस्त थकान

मुर्गा बोला कुकडूँ कूँ ,
चला अँधेरा , सोते कयूं ।
जाग रही है उजली भोर ,
सुनो ज़रा चिडियों का शोर ।

सोंधी हवा पुलकते खेत ,
नदी किनारे ठंडी रेत ।
खिलती कलियाँ , हिलती डाल ।
रूठा चंदा फूले गाल ।

अभी ला रहा सूरज घाम ,
ऐसे में आराम हराम ।
तजो नींद का बंद मकान ,
भरो बदन में मस्त थकान


चूहे का संकट

चले झूम कर चूहे राजा
दूल्हा बने , बज गया बाजा ।
बनी दुल्हनियां , चुहिया रानी
घूंघट में थी छुपी सायानी ।

चूहा जब सिन्दूर लगाने
उसका घूंघट लगा उठाने ।
कानी दुल्हन देख घबराया
चूहे राजा को गश आया ।

पल बीते , चेती जब काया
तभी मित्र कौआ भी आया ।
चूहे की आँखे भर आयी
कौए को सब व्यथा सुनाई ।

कौआ बोला , दुख न पाओ
नकली आँख इसे लगवाओ ।
चूहे का सब संकट भागा
जैसे सोते से वह जागा ।

1 comment:

रावेंद्रकुमार रवि said...

दोनों ही रचनाएँ बच्चों के मन को भाएँगी!