Sunday, July 3, 2011

अशोक आंद्रे





बूंदों का संगीत

रिमझिम-रिमझिम बरखा आई,
काली चादर - सी लहराई.
गलियों में बच्चों का शोर,
नाच रहे खुश होकर मोर .

पंख उड़ाता गाता गीत,
गर्मी ओढ़ रही है शीत.
धरती बाँट रही है प्रीत,
बूंदों का शीतल संगीत.


हरित क्रान्ति है चारों ओर,
हर्षित होकर भागें ढोर.