Saturday, September 26, 2009

अशोक आन्द्रे



भय का शेर

एक रात गीदड़ सपने में
बन बैठा जंगल का राजा,
घोडों के रथ पर बैठा वह,
हाथी बजा रहे थे बाजा।

भालू और भेड़ियों की थी

फौज चल रही आगे - आगे ,
जंगल के कुछ और जानवर ,
रथ के पीछे - पीछे भागे।

नाच रही लोमड़ी डगर में
बन्दर बजा रहा शहनाई
जिसकी मीठी तान , मांद में ,
बीच शेर को पडी सुनाई ।

वह जागा , अँगड़ाया उठकर ,
तुंरत मांद से बाहर आया ,
गीदड़ का जुलूस देखा तो ,
गुस्से में माथा भन्नाया ।

घुड़का , फिर बादल- सा गरजा ,
कस कर एक छलांग लगाई ,
गीदड़ चीखा , अरे बाप रे ,
अब तो मेरी शामत आई ।

रथ से कूद जोर से भागा
भय का शेर लग गया पीछे ,
सपना टूटा , नींद खुल गई ,
फिर भी लेटा आँखे मीचे