Saturday, April 25, 2009

अशोक आन्द्रे

सच्चा व्यापार


सोंधी हवा महकते फूल ,
भँवरे रहे लता पर झूल ।
कोयल बोले मीठे बोल ,
मिस्री - सी जीवन में घोल ।

नव प्रभात की उजली भोर ,
शुभ भविष्य की मंगल डोर ।
सूरज भी दिखलाता प्यार ,
खेतों का करता सिंगार ।

झूम रही नदिया की धार ,
महक रहा जीवन की सार ।
मेहनत ही सच्चा व्यापार ,
जीवन के सुख का आधार ।


गर्मी का गीत

गर्मी के मौसम में भईया ,
लू लगती है भारी ।
कंबल और रजाई भागे ,
कहकर हमको सॉरी !

झुलस रही हरियाली ,

है सड़कों पर सन्नाटा ।
एयर कूल में बैठ सभी ,
गर्मी को कहते टा - टा ।

2 comments:

रावेंद्रकुमार रवि said...

आपकी रचनाएँ अच्छी लगीं!
शुभकामना है कि
आप ऐसी ही रचनाओं का सृजन
हमेशा करें!

Deepak "बेदिल" said...

wahhhh sir ji kya baat hai...julas rahi hai haryali ...nayi soch...nashkaar