Thursday, March 19, 2009

कहानी -अशोक आन्द्रे

गुरु की महिमा


बहुत समय पहले की बात है । उत्तरी सीमा पर एक छोटा -सा राज्य था । उस राज्य में दो भाई रहा करते थे । दोनों भाई बहुत आलसी थे । छोटा भाई बहुत चालाक था । अपने सामने हर किसी को बेवकूफ समझता था ।

उनके पिता काफी बूढ़े हो चले थे । उन्होंने भी कई बार समझाने की कोशिश की , लेकिन उन दोनों के कानोँ पर जूं तक न रेंगती थी ।
एक दिन दोनों भाई गांव से दूर एक झील के किनारे पत्थरों से खेल रहे थे । तभी वहां पर एक बगुला आया और पानी में से मछलिओं को हवा में उछाल कर मुहं में भरने लगा ।

दोनों भाई इस खेल को देख कर काफ़ी आनंद ले रहे थे । तभी छोटे भाई को एक बात सूझी । उसने बडे भाई से कहा - "अगर हम इस खेल को सीख लें तो पूरे देश में नाम हो जायगा । काफी पैसे भी कमा सकते हैं । फिर हमें कोई भी आलसी नहीं कहेगा ।


बड़ा भाई बोला -देखो , इसके लिए काफी साधना करनी पड़ेगी । तब कहीं जाकर इस विद्या को सीख पाएँगे । इसके लिए हमें किसी गुरु की शरण में जाना पड़ेगा ।


गुरु का नाम सुनकर छोटा भाई उसकी हँसी उड़ाने लगा - मैं तो इस खेल का अभ्यास अभी से शुरू कर रहा हूँ । तुम चाहो तो मेरे साथ आ सकते हो ।


बडा भाई चुप रहा । लेकिन छोटे भाई ने उस दिन से अभ्यास करना शुरू कर दिया । बगुले को बड़े ध्यान से देखता ओर इस तरह अभ्यास करते हुए काफी समय बीत गया । अब वह बड़े आराम से लाठी को हवा में उछाल कर मुंह से पकड़ लेता था ।


काफी समय के पश्चात् , छोटे भाई के इस खेल की शोहरत गाँव में फैल गई । फिर गाँव से होती हुई राजा तक इस बात की ख़बर पहुंची ।


एक दिन राजा ने छोटे भाई को दरबार में बुलाया । उसने अपने करतब दिखाकर दरबार के सभी लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया । लेकिन राजा उसके खेल को बड़ी खामोशी के साथ देखते रहे ।


अपने करतब दिखाने के बाद छोटे भाई ने राजा को सलाम किया और इनाम पाने के लालच में एक तरफ चुपचाप खड़ा हो गया ।


मगर राजा ने उससे कहा - तुम हमें अगले हफ्ते अपना खेल दुबारा दिखाना , तब हम तुम्हें बहुत सारा इनाम देंगे ।


अगले हफ्ते छोटा भाई फिर राजमहल पहुंचा । वहां उसने जैसे ही अपना करतब दिखाना शुरू किया की राजा ने उसे रोका । कहा , पहले आपने गुरु का नाम बताओ ।


छोटे भाई ने घमंड से सीना तानते हुए कहा , महाराज , हमारा कोई गुरु नहीं है । मैंने स्वयं ही इस विद्या को सीखा है ।


राजा को बडा आश्चर्य हुआ । उन्होंने छोटे भाई को एक बल्लम दिया और कहा - अगर तुम इसे उछाल कर मुंह से पकड़ कर दिखा दो तो हम तुम्हें आधा राज्य इनाम में देंगे ।


छोटे भाई ने गर्व से सभी लोगों को देखा और सीना फुलाकर बल्लम को हवा में उछाल दिया ।


जैसे ही बल्लम को मुंह से पकड़ना चाहा , वह लडखडा गया और बल्लम उसके शरीर को चीरता चला गया ।


इस दृश्य को देख कर दरबार में भय मिश्रित सन्नाटा छा गया ।


राजा ने दरबार को संबोधित करते हुए कहा - मैंने इस बात की खोज पहले से ही करवा ली थी । आख़िर कहाँ से इन्होंने इस विद्या को सीखा है । जो लोग गुरु का अपमान इस तरह उनका नाम छिपा कर करते हैं , उनका यही हाल होता है ।

1 comment:

सुधाकल्प said...

बहुत ही अच्छी ,शिक्षाप्रद कहानी है | अंत में नवीनता है |अध्यापन का अनुभव होने के कारण इसे जी भर जिया है |

सुधा भार्गव