Monday, December 24, 2012

अशोक आंद्रे

वही सदा पछताते
एक तरफ है दूध-जलेबी
दूजी ओर मलाई .
बिल्ली मौसी सोच रही है
किसकी करूँ चटाई .
इतने में हलकी-सी आहट
जिस कोने से आई।
उसी तरफ बिल्ली को जाता
चूहा पडा दिखाई .
भूल गयी सब खान-पीना
देख उसे ललचाई .
रही घूरती बैठी उसने
लार नहीं टपकाई।
धीरे से उठ पंजा चला
झपट उधर को धाई ।
पर चूहे के साथ नदारद
थी उसकी परछाई।
मुड़ी दूसरी तरफ,देखकर
दंग रह गयी भाई।
टामी सारा दूध पी गया।
चट कर गया मलाई।
आधी छोड़ एक को धाते
वही सदा पछताते।
बड़े-बड़े, चालाक सदा
लालच में मारे जाते।
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10 comments:

तिलक राज कपूर said...

कविता बच्‍चों की ज्ञान सभी के लिये। बाल-साहित्‍य की यह मूल आवश्‍यकता है कि सकारात्‍मक उर्जा मिले सद्ज्ञान मिले। आप सफ़ल रहे।

PRAN SHARMA said...

AAPKEE IS KAVITA SE AANANDIT HO GAYAA HUN . BACHCHE - BOODHE SABHEE
ISKAA MAZAA LE SAKTE HAIN .

Anju (Anu) Chaudhary said...

हा हा हाहा ...सही में बचपन की याद आ गई
लालच बुरी बला है :)

Anonymous said...

वही सदा पछताते -कविता अति सरल व सहजभाव से लिखी गई है ।विभिन्न मुद्राओं व् हाव -भाव के साथ कविता पाठ करके बच्चे दर्शकों को मुग्ध कर पाने में सफल होंगे ।इसके द्वारा मिली शिक्षा बच्चों के लिए ही नहीं है बल्कि सभ्यता का मुखौटा लगाए उन चालाक लोगों के लिए भी है जो सीधे हाथ से नहीं तो उंगलियाँ टेढ़ी करके अपना कद ऊँचा करने में लगे हुए हैं लेकिन एक न एक दिन वे पंख कटे पक्षी की तरह जमीन पर चारों खाने चित्त जरूर आन पड़ेंगे ।
sudha bhargava

Udan Tashtari said...

लालच बुरी बला है...अच्छी सीख!!

Anonymous said...

आदरणीय अशोक जी,
प्रणाम!

बहुत अच्छी लगी बाल कविता. इस आपाधापी वाली ज़िंदगी में ऐसी प्यारी बाल कविता मन को बचपन में ले जाती है. मेरे ब्लॉग पर आपकी प्रातक्रिया का इंतज़ार रहेगा.

जेनी

Anonymous said...

बाल साहित्य के क्षेत्र में कम लोग हैं | ये प्यारी कवितायेँ लिख कर आप बच्चों का भला कर रहे हैं |
इला

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...



♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
♥नव वर्ष मंगबलमय हो !♥
♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥




आधी छोड़ एक को धाते
वही सदा पछताते।
बड़े-बड़े, चालाक सदा
लालच में मारे जाते।

आऽहाऽह... ! क्या बात है !
आदरणीय अशोक आंद्रे जी
प्रणाम !

बाल कविता के नाम पर बचकानी कविता लिखने वालों की भी कमी नहीं ...
अकादमियां ईनाम देती हैं उसे खींचने के लिए बाल कवियों के नाम पर भी कई छद्म कवि सक्रिय हैं ...

यह तो थी एक पीड़ा
संतुष्टि की बात है आपके ब्लॉग तक पहुंचना
आपकी कई कविताएं पढ़ गया हूँ अभी आधे घंटे में

बचपन का ज़माना याद हो आया ...
और याद हो आई पराग , नंदन , चंपक , राजाभैया , चंदामामा , गुड़िया जैसी पत्रिकाओं की ...
बहुत अच्छी लगी आपकी कविताएं !
आभार !

आपकी लेखनी से सदैव सुंदर , सार्थक , श्रेष्ठ सृजन होता रहे …
नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
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ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत प्यारा बालगीत....
मज़ा आया पढ़ कर..

आभार
सादर
अनु

सुधाकल्प said...

बेचारी बिल्ली --न इधर की रही और न रही उधर की । स्वर के उतार चढ़ाव व विभिन्न मुद्राओं के साथ बच्चे जब इस कविता को बोलेंगे तब इसकी खूबसूरती दुगुन हो जाएगी । यह बाल कविता अपनी शिक्षा के कण बिखेरती सरल व सहज भाव से बह रही है ।