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अशोक आंद्रे
चिड़िया रानी
मेरी प्यारी सुन्दर चिड़िया
चूँ -चूँ , चूँ -चूँ करती है।
फुदक-फुदक हर आँगन में
इधर-उधर वह तकती है।
देख उसे फिर मुन्ना राजा
दाना आँगन में बिखराता।
धीरे से फिर आगे बढ़कर
उसे तुरंत पकड़ने जाता।
लेकिन चिड़िया अपनी धुन में
चूँ -चूँ , चूँ -चूँ करती है।
आँगन का वह दाना चुगकर
चुपके से उड़ जाती है।
10 comments:
काश् हर चिडि़या इतनी स्मार्ट होती।
अशोक जी,
अगर इस सुंदर कविता में आप दो परिवर्तन कर लें तो मेरे हिसाब से यह और सुंदर हो जाएगी।
पहले पद की पहली पंक्ति में मेरी की जगह प्यारी और तीसरे पद की दूसरी पंक्ति में करती की जगह गाती। यानी इस तरह-
प्यारी प्यारी सुन्दर चिड़िया
चूँ -चूँ , चूँ -चूँ करती है।
फुदक-फुदक हर आँगन में
इधर-उधर वह तकती है।
लेकिन चिड़िया अपनी धुन में
चूँ -चूँ , चूँ -चूँ गाती है।
आँगन का वह दाना चुगकर
चुपके से उड़ जाती है।
अशोक जी
कविता को पढ़कर मेरा एक कोना बालमन मुस्करा उठा |भोले -भाले बच्चों की नादानी को बहुत खूबसूरती से आपने शब्दों में ढाला है|रुई से कोमल ,मक्खन से चिकने पंखों वाली छोटी सी चिड़िया अब भी लुभाती है |
ISE KAHTE HAIN BACHCHON KEE KAVITA ,
PYAAREE - PYAAREE AUR MAN MEIN UTAR
JAANE WAALEE . AAPKAA BACHCHON KAA
LEKHAN BHEE KHOOB HAI !
आज की चिडियाँ स्मार्ट ही हैं ....वक्त के मुताबिक वो भी बदल गई हैं
बातों में बात ......कविता के भाव ...मन को छू गए ..
बेहद प्रभावशाली रचना ! आभार आपका !
बहुत प्यारी कविता, चीं चीं कर गुनगुनाती हुई, शुभकामनाएँ.
बहुत ही सुंदर बाल-कविता ....चिढिया की चूं-चूं कानों से मन के बाल-सुलभ गुम्बद में गूँज गयी. पढ़ कर आनंद आ गया.
सार्थक रचना, सुन्दर भावाभिव्यक्ति.
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें, आभारी होऊंगा.
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