मस्त थकान
मुर्गा बोला कुकडूँ कूँ ,
चला अँधेरा , सोते कयूं ।
जाग रही है उजली भोर ,
सुनो ज़रा चिडियों का शोर ।
सोंधी हवा पुलकते खेत ,
नदी किनारे ठंडी रेत ।
खिलती कलियाँ , हिलती डाल ।
रूठा चंदा फूले गाल ।
अभी ला रहा सूरज घाम ,
ऐसे में आराम हराम ।
तजो नींद का बंद मकान ,
भरो बदन में मस्त थकान ।
चूहे का संकट
चले झूम कर चूहे राजा
दूल्हा बने , बज गया बाजा ।
बनी दुल्हनियां , चुहिया रानी
घूंघट में थी छुपी सायानी ।
चूहा जब सिन्दूर लगाने
उसका घूंघट लगा उठाने ।
कानी दुल्हन देख घबराया
चूहे राजा को गश आया ।
पल बीते , चेती जब काया
तभी मित्र कौआ भी आया ।
चूहे की आँखे भर आयी
कौए को सब व्यथा सुनाई ।
कौआ बोला , दुख न पाओ
नकली आँख इसे लगवाओ ।
चूहे का सब संकट भागा
जैसे सोते से वह जागा ।
मुर्गा बोला कुकडूँ कूँ ,
चला अँधेरा , सोते कयूं ।
जाग रही है उजली भोर ,
सुनो ज़रा चिडियों का शोर ।
सोंधी हवा पुलकते खेत ,
नदी किनारे ठंडी रेत ।
खिलती कलियाँ , हिलती डाल ।
रूठा चंदा फूले गाल ।
अभी ला रहा सूरज घाम ,
ऐसे में आराम हराम ।
तजो नींद का बंद मकान ,
भरो बदन में मस्त थकान ।
चूहे का संकट
चले झूम कर चूहे राजा
दूल्हा बने , बज गया बाजा ।
बनी दुल्हनियां , चुहिया रानी
घूंघट में थी छुपी सायानी ।
चूहा जब सिन्दूर लगाने
उसका घूंघट लगा उठाने ।
कानी दुल्हन देख घबराया
चूहे राजा को गश आया ।
पल बीते , चेती जब काया
तभी मित्र कौआ भी आया ।
चूहे की आँखे भर आयी
कौए को सब व्यथा सुनाई ।
कौआ बोला , दुख न पाओ
नकली आँख इसे लगवाओ ।
चूहे का सब संकट भागा
जैसे सोते से वह जागा ।
1 comment:
दोनों ही रचनाएँ बच्चों के मन को भाएँगी!
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