आस लिए फिर चलती है
नदी किनारे बैठी बुढ़िया
सोच रही है मन में ।
शीत लहर बर्फीला पानी
आग नहीं है तन में ।
सूरज का बचपन कोहरे को
लाँघ नहीं पाया है ।
हिम शिखरों के पीछे से
मौसम भी शरमाया है ।
श्वेत चादरों के नीचे
तेज हवाएं फेंके बाण ।
सूने व खाली मन में
चारों और उठे तूफान ।
ऐसे में जीने की इच्छा
पर फैलाए उठती है ।
बहती नदिया की धारा संग
आस लिए फिर चलती है ।
नदी किनारे बैठी बुढ़िया
सोच रही है मन में ।
शीत लहर बर्फीला पानी
आग नहीं है तन में ।
सूरज का बचपन कोहरे को
लाँघ नहीं पाया है ।
हिम शिखरों के पीछे से
मौसम भी शरमाया है ।
श्वेत चादरों के नीचे
तेज हवाएं फेंके बाण ।
सूने व खाली मन में
चारों और उठे तूफान ।
ऐसे में जीने की इच्छा
पर फैलाए उठती है ।
बहती नदिया की धारा संग
आस लिए फिर चलती है ।
शांत नदी - सा गाता वक्त
रोज़ सवेरे आता वक्त
साँझ ढले फिर जाता वक्त ।
कठपुतली सा नाच नचाकर
चिड़ियों - सा फुदकाता वक्त ।
आँख मूंद सोने वालों को
बंदर नाच नचाता वक्त ।
कठोर उद्यमी के जीवन में
शांत नदी - सा गाता वक्त ।
कर्म ही जीवन का ध्येय
ऐसा गीत सुनाता वक्त ।
6 comments:
स्वागत और बधाई!
होली की हार्दिक् शुभकामनाएं।
सुंदर रचना के लिए बधाईयां।
भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।
लिखते रहिए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
कविता,गज़ल और शेर के लिए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
मेरे द्वारा संपादित पत्रिका देखें
www.zindagilive08.blogspot.com
आर्ट के लिए देखें
www.chitrasansar.blogspot.com
vakt hee sabkuchh hai, narayan narayan
ब्लॉग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है .....
मेरी शुभकामनाएं .............
भई वाह !
रंग रची मंगलकामनायें ..
aanad maye hai sir ji maza aagaya ...khaskar waqt wali rachnae me...thnx
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